अगस्त माह में राखी सिंह समेत 5 महिलाओं की ओर से सिविल जज सीनियर डिवीजन रविकुमार दिवाकर की अदालत में एक प्रार्थना पत्र दिया गया था। इसमें मांग की, कि ज्ञानवापी परिसर में स्थित मां शृंगार गौरी के दर्शन-पूजन की अनुमति दी जाए। इसके साथ वहां अन्य देवी-देवताओं के विग्रहों को सुरक्षित किया जाए। मंदिर पक्ष की तरफ से हरिशंकर जैन, विष्णु जैन, सुधीर त्रिपाठी, मान बहादुर ङ्क्षसह, शिवम गौड़, अनुपम द्विवेदी ने मुकदमा लड़ रहे हैं तो,दूसरी तरफ मस्जिद पक्ष के वकील मेराजुद्दीन सिद्दीकी, रईस अहमद, शमीम अहमद हैं। मस्जिद पक्ष के वकील अभयनाथ यादव का निधन सुनवाई के बीच में हो गया था।
मंदिर पक्ष की ओर साक्ष्य इस प्रकार रखे – भूखंड का आराजी संख्या 9130 (विवादित परिसर) में लगातार दर्शन-पूजन होता रहा है। 1993 में बेरिकेटिंग होने तक हिन्देदू वी-देवताओं की पूजा होती थी।
काशी विश्वनाथ एक्ट 1993 में पूरे परिसर को बाबा विश्वनाथ के स्वामित्व का हिस्सा माना गया। एक्ट के खिलाफ जो फैसले हुए, वे शून्य हैं। ज्ञानवापी वक्फ संपत्ति नहीं है, क्योंकि वक्फ संपत्ति का कोई मालिक होना चाहिए। इस मामले में संपत्ति हस्तांतरण का कोई आधार नहीं है।-प्रदेश शासन की ओर से जारी गजट में ज्ञानवापी की वक्फ संख्या 100 बताई गई है। मगर कोई आराजीसंख्या दर्ज नहीं है।
1937 में दीन मोहम्मद केस में 15 गवाहों ने स्पष्ट रूप से कहा कि यहां पूजा अर्चना होती रहती थी। ऐसे में मंदिर की मान्यता की कोई नई बात नहीं है।
विपक्षी पक्ष ने अपनी तरफ से कहा प्रार्थना पत्र की प्रकृति जनहित याचिका जैसी है, क्योंकि इसमें दर्शन-पूजन के अधिकार की मांग पूरे ङ्क्षहदू समाज के लिए की गई है। इसलिए सुनवाई स्थानीय अदालत में नहीं हो सकती।
ज्ञानवापी मस्जिद वक्फ की संपत्ति है। वक्फ एक्ट के तहत मुकदमे की सुनवाई सिविल अदालत में नहीं हो सकती है।
दीन मोहम्मद बनाम सरकार 1937 के मुकदमे में अदालत ने ज्ञानवापी को मस्जिद माना है और नमाज का अधिकार दिया है।वर्षों से ज्ञानवापी मस्जिद में नमाज हो रही है, इसलिए पूजा अधिनियम (विशेष प्रविधान) 1991 लागू होता है।औरंगजेब की दी जमीन पर मस्जिद बनी थी। उस वक्त औरंगजेब का शासन था, इसलिए संपत्ति भी उसकी थी।विपक्षी पक्ष अदालत के फैसले से खुश नहीं ।विपक्षी कहता है कि हमारी आपत्तियों की ओर ध्यान नहीं किया गया है। हाई कोर्ट में रिवीजन याचिका दाखिल करेंगे।
याचिककर्ता के वकील के अनुसार मुकदमे को लेकर हमने जो तथ्य रखे, अदालत ने उन्हें सही पाया। हम आगे भी मुकदमे को मजबूती से लड़ेंगे।
अदालत फेसला देते हुए कुछ बाते कहती है ।पांचों महिलाओं ने प्रार्थना पत्र में विवादित स्थल के मालिकाना हक की मांग नहीं की है, सिर्फ मां शृंगार गौरी की नियमित पूजा करने व अन्य देवी-देवताओं के विग्रह के संरक्षण की मांग की है। 1993 तक उनकी नियमित पूजा होती भी थी। 1993 के बाद से हर वर्ष सिर्फ एक बार नवरात्र चतुर्थी के दिन पूजा की जा रही है।यह मुकदमा नागरिक अधिकार, मौलिक अधिकार के साथ-साथ रीति-रिवाजों व धार्मिक अधिकार के रूप में पूजा के अधिकार तक सीमित है। वह विवादित स्थल को मंदिर घोषित करने की मांग नहीं कर रहीं।
इस मुकदमे की सुनवाई करने के अदालत के अधिकार क्षेत्र को बाधित नहीं किया जा सकता। याचिककर्ता गैर-मुस्लिम हैं, इसलिए वक्फ एक्ट की धारा 85 के तहत मुकदमे की सुनवाई पर प्रतिबंध इस मामले में लागू नहीं होता।
याचिककर्ता की दलीलों के अनुसार वे 1993 तक ज्ञानवापी परिसर स्थित मां शृंगार गौरी, भगवान हनुमान और भगवान गणेश की पूजा कर रही थीं।विपक्षी पक्ष के वकील ने तर्क दिया कि यह मुकदमा उप्र श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर अधिनियम, 1983 से बाधित है। विपक्ष पक्ष यह सिद्ध नहीं कर सके कि मुकदमा इस अधिनियम से बाधित कैसे है।किसी विग्रह के खंडित हो जाने से धर्मस्थल की धार्मिक निष्ठा-पवित्रता कम या खत्म नहीं हो जाती।विग्रह की अनुपस्थिति में भी कानूनी रूप से भी उस धार्मिक स्थल की मान्यता अक्षय रहती है।
इसके बाद सर्वे में ज्ञानवापी परिसर में शिवलिंग मिलने के मंदिर पक्ष के दावे और शिवलिंग मिलने के स्थान को सील करने के स्थानीय कोर्ट के आदेश के खिलाफ इंतेजामिया ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। सर्वोच्च न्यायालय ने मामले की सुनवाई जिजा जज की अदालत को ट्रांसफर करने के साथ निर्देश दिया था कि सबसे पहले यह मुकदमा सुनने योग्य है या नहीं, इस पर विचार किया जाए।
मामले में वादी के साथ ही प्रतिपक्ष की ओर से दलीलें पूरी होने के बाद सभी को अदालत के आदेश का इंतजार था। दोपहर दो बजे से पहले ही पक्ष के वकील और मंदिर पक्ष की महिलाएं अदालत में पहुंच गई थीं। मस्जिद पक्ष के वकील भी आ गए थे।