आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दूसरे सरसंघचालक माधव सदाशिव राव गोलवलकर उपाख्य श्री गुरु जी की जयंती है। श्री गुरूजी ने ही डॉ हेडगेवार द्वारा रोपित संघ के बीज को विशाल वृक्ष में परिवर्तित किया था। आज संघ जो कुछ भी है उसमें श्री गुरूजी का योगदान अतुलनीय है। आज के दिन राष्ट्र के परिप्रेक्ष्य में संघ की भूमिका पर दृष्टि डालना आवश्यक है। ‘संगठन में शक्ति होती है’ यह प्रसिद्ध वाक्य अधिकांश लोग जानते हैं। परन्तु संगठन की आवश्यकता क्यों पड़ती है इसका उत्तर जानना आवश्यक है। सम्भवतः किसी भी संगठन का अंकुर किसी व्यक्ति अथवा समाज की आकांक्षा से फूटता है और परिस्थितियों पर निर्भर करता है। इतिहास से ज्ञात होता है कि अधिकांश संगठन किसी एक विशेष विषय, विशेष क्षेत्र अथवा आपस में जुड़े विभिन्न क्षेत्रों में, या एक विशेष ‘कल्चर’ या ‘पैटर्न’ में काम करते दिखाई देते हैं। ऐसे अधिकांश संगठन व्यक्ति विशेष पर आधारित अथवा व्यक्तिनिष्ठ होते है। जैसे ही उस व्यक्ति या क्षेत्र विशेष की चमक फीकी होती है वैसे ही वह संगठन भी अस्त होने लगता है। इसका कारण एक ही है व्यक्ति पतनशील है और समय बलवान। संगठनों के संबंध में अधिकांशतः ऐसा ही होता है। परन्तु एक संगठन है जो इस परिपाटी अथवा सिद्धांत को गलत सिद्ध करता है। उस संगठन का नाम है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। अंग्रेजों के शासनकाल में सन 1925 में नागपुर में डॉ. हेडगेवार ने जिसकी स्थापना की थी। एक संगठन के रूप में जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की 1925 से शुरू हुई यात्रा को जब देखते हैं तो हमें ज्ञात होता है कि हर काल के हर पड़ाव पर, हर परिस्थिति में और कालांतर में हुए प्रत्येक संघर्ष के बाद इस संगठन की आभा में निखार आता गया और संगठन और अधिक मजबूत होता गया।

राष्ट्र के परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका महत्वपूर्ण रही है और भविष्य में भी रहने वाली है। इसमें किसी को भी कोई संदेह नहीं रखना चाहिए। कारण इसकी कार्यपद्धति और लक्ष्यों में निहित शक्ति है। जिसके लिए इसके कार्यकर्ता रात दिन लगे हुए हैं। उदाहरण स्वरुप यदि राजनीतिक क्षेत्र को देखे क्योंकि राजनीति सबको प्रभावित करती है तो आज देश के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, कई केंद्रीय मंत्री, कई राज्यों के मुख्यमंत्री और राज्यपाल संघ की विचारधारा से जुड़े है अथवा निकले हैं। इन सभी के प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता। इसके अनुषांगिक संगठनों की कार्यशैली में भी संघ के विचार समाहित रहते हैं। राष्ट्र के परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका के बारे में यदि वास्तव में अध्ययन अथवा शोध करना हो तो इसके सभी अनुषांगिक संगठनों के बारे में भी विस्तृत शोध की आवश्यकता है। अंततोगत्वा यही कहा जा सकता है कि संघ ने डॉ. हेडगेवार के मार्गदर्शन में अपनी स्थापना के समय से ही व्यक्तिनिष्ठा के स्थान पर भगवाध्वज के रूप में तत्वनिष्ठा के मंत्र के साथ राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखते हुए अनवरत कार्य किया है और कर रहा है।

आज यदि हम इसकी 96 वर्ष की ऐतिहासिक यात्रा पर दृष्टि डालते हैं तो हमें पता चलता है इसके विरोधियों द्वारा इसके मार्ग में अनेक व्यवधान और संकट उत्पन्न किये जाने के बाबजूद भी यह संगठन और इसकी यात्रा पहले से और अधिक सुदृढ़ और प्रखर हुई है और यह निरंतर आगे बढ़ रहा है।

लेखक रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय के राजनीति शास्त्र विभाग में अतिथि विद्वान हैं।

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